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Sunday, 18 May 2014
मुलायम की सियासी मजबूरी
मुलायम की सियासी मजबूरी
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। लोकसभा चुनाव के खराब नतीजों से मुकाबिल समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के सामने अब आजमगढ़ का सांसद बने रहने और मैनपुरी छोड़ने का ही सियासी विकल्प होगा। क्योंकि जिस संघर्ष से उन्हें आजमगढ़ जीत हासिल हुई है, वह किसी दूसरे के मैदान में उतरने पर दोबारा हासिल हो सकेगी, इसमें खासा संदेह है।
नरेंद्र मोदी की लहर को परख कर राजनीति के सुजान मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के साथ समाजवादी गढ़ आजमगढ़ से भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया, मगर पार्टी के प्रभावशाली मंत्रियों से आवाम में नाराजगी के चलते उन्हें भी ताकत झोंकने को मजबूर होना पड़ा। सपा मुखिया संसदीय क्षेत्र की गोपालपुर, सगड़ी और नेहनगर विधानसभा क्षेत्रों में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से बहुत थोड़े मतों से ही आगे रहे। आजमगढ़ शहर और मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्रों से मिली बढ़त के चलते मुलायम जैसा कद्दावर नेता भी महज 63204 वोटों से जीत हासिल कर सका, इसके विपरीत तीन बार से लगातार मुलायम को संसद भेज रहे मैनपुरी के मतदाताओं ने चौथी पारी में भी उन्हें तीन लाख चौसठ हजार वोटों की भारी जीत का तोहफा दिया। हालांकि तीन बत्ताीधारी नेताओं के विधानसभा क्षेत्र के कस्बे भोगांव में पहली बार साइकिल को झटका भी लगा।
इन सियासी परिस्थितियों में सपा मुखिया के सामने आजमगढ़ सीट को अपने पास रखने और मैनपुरी सीट छोड़ किसी भी करीबी को जितवा लेने का ही सियासी विकल्प होगा। हालांकि सपा के महासचिव शिवपाल सिंह यादव और दूसरे महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव चुनावी बेला में ही यह ऐलान कर चुके थे कि मुलायम आजमगढ़ सीट अपने पास रखेंगे। सपा सूत्रों का कहना है कि इस ऐलान से इतर अब सपा मुखिया पर इस सीट पर बरकरार रखने का सियासी दबाव भी होगा क्योंकि केंद्र में बहुमत की सरकार बनने जा रही है, ऐसे में अगर उन्होंने आजमगढ़ सीट छोड़ी तो फिर पार्टी के किसी दूसरे नेता को यहां से जिताना और भी कठिन कार्य हो जाएगा।ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए क्लिक करें m.jagran.com परया
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(Hindi news from Dainik Jagran, newsstate Desk)
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ। लोकसभा चुनाव के खराब नतीजों से मुकाबिल समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के सामने अब आजमगढ़ का सांसद बने रहने और मैनपुरी छोड़ने का ही सियासी विकल्प होगा। क्योंकि जिस संघर्ष से उन्हें आजमगढ़ जीत हासिल हुई है, वह किसी दूसरे के मैदान में उतरने पर दोबारा हासिल हो सकेगी, इसमें खासा संदेह है।
नरेंद्र मोदी की लहर को परख कर राजनीति के सुजान मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के साथ समाजवादी गढ़ आजमगढ़ से भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया, मगर पार्टी के प्रभावशाली मंत्रियों से आवाम में नाराजगी के चलते उन्हें भी ताकत झोंकने को मजबूर होना पड़ा। सपा मुखिया संसदीय क्षेत्र की गोपालपुर, सगड़ी और नेहनगर विधानसभा क्षेत्रों में अपने निकटतम प्रतिद्वंदी से बहुत थोड़े मतों से ही आगे रहे। आजमगढ़ शहर और मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्रों से मिली बढ़त के चलते मुलायम जैसा कद्दावर नेता भी महज 63204 वोटों से जीत हासिल कर सका, इसके विपरीत तीन बार से लगातार मुलायम को संसद भेज रहे मैनपुरी के मतदाताओं ने चौथी पारी में भी उन्हें तीन लाख चौसठ हजार वोटों की भारी जीत का तोहफा दिया। हालांकि तीन बत्ताीधारी नेताओं के विधानसभा क्षेत्र के कस्बे भोगांव में पहली बार साइकिल को झटका भी लगा।
इन सियासी परिस्थितियों में सपा मुखिया के सामने आजमगढ़ सीट को अपने पास रखने और मैनपुरी सीट छोड़ किसी भी करीबी को जितवा लेने का ही सियासी विकल्प होगा। हालांकि सपा के महासचिव शिवपाल सिंह यादव और दूसरे महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव चुनावी बेला में ही यह ऐलान कर चुके थे कि मुलायम आजमगढ़ सीट अपने पास रखेंगे। सपा सूत्रों का कहना है कि इस ऐलान से इतर अब सपा मुखिया पर इस सीट पर बरकरार रखने का सियासी दबाव भी होगा क्योंकि केंद्र में बहुमत की सरकार बनने जा रही है, ऐसे में अगर उन्होंने आजमगढ़ सीट छोड़ी तो फिर पार्टी के किसी दूसरे नेता को यहां से जिताना और भी कठिन कार्य हो जाएगा।
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