Monday, 12 May 2014

मेरठ में बलवा पर सरकार का निकम्मापन


मेरठ में बलवा पर सरकार का निकम्मापन
लखनऊ। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी मेरठ में पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में होने वाली हिंसा से सरकार का निकम्मापन फिर साबित हुआ। दंगाइयों के हौंसले बढ़े हैं और उन पर कार्रवाई होने के बजाय उन्हें संरक्षण मिलता है। सुरक्षा बलों की तैनाती में बेवजह देरी किए जाने से हालात गंभीर हुए है।
रालोद प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ना सपा व भाजपा की सोची समझी चुनावी रणनीति का हिस्सा रहा। मतदान के अंतिम चरण में मेरठ में सांप्रदायिक तनाव होना दुर्भाग्यपूर्ण है। दंगाइयों के साथ सख्ती से निपटना जाए ताकि सौहार्द बिगाड़ने में जुटी ताकतों के हौंसले पस्त हो।
नकाबपोशों ने बरसाई गोलियां
मेरठ में बलवे के दौरान हथियारों का खुलकर प्रदर्शन हुआ। सवाल है कि यकायक आखिर कहां से हथियार व कारतूस आ गए? एक संप्रदाय ने तो दूसरे संप्रदाय पर ए-47 और पेट्रोल बम का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। बहुसंख्यक समुदाय के लोगों का आरोप है कि दूसरे पक्ष से कुछ हमलावर नकाब लगाए हुए थे। चुनाव के चलते अधिकांश लाइसेंसी हथियार जमा करा दिए थे, मगर शनिवार को जैसे ही बवाल हुआ, एकाएक बड़ी संख्या में हथियार निकल आए। चोरों और से गोलियां बरसने लगी। खुलकर तमंचे व पिस्टल, बंदूकों को इस्तेमाल हुआ। पुलिस के सामने ही असलहों का प्रयोग हुआ। एक संप्रदाय के लोगों ने संप्रदाय विशेष के लोगों पर ए-47 से हमला करने की आरोप भी लगाया है। उनका कहना है कि उन्होंने पहले से घरों में हथियार छिपा रखे थे। विवाद होने के बाद नकाब पहनकर गोलियां बरसाने लगे। पूरे मंजर को देखकर लोग इस खूनखराबे के पीछे बड़ी साजिश का अनुमान लगा रहे हैं।
एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड नहीं पहुंची
मेरठ के सांप्रदायिक संघर्ष में पुलिस-प्रशासन के हाथ-पांव किस तरह से फूल गए थे, इसका अंदाजा ग्राउंड जीरो पर देखने को मिला। घायलों को ले जाने के लिए समाजवादी एंबुलेंस 108 और आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को प्रशासन समय नहीं बुला सका। गोलीबारी और पथराव के बीच दर्जनों लोगों के घायल होने की सूचना पुलिस-प्रशासन को मिलती रही, लेकिन पूरे जिले में से एक भी एंबुलेंस मौके पर नहीं पहुंची। सवा दो बजे की घटना में घायलों को लोग अपने-अपने वाहन या पुलिस जीप से अस्पताल ले जाते देखे गए। तब तक भी कोई एंबुलेंस मौका-ए-वारदात के आसपास नहीं पहुंचा था। पुलिस-प्रशासन भी एक सीमित दायरे तक ही सिमटा हुआ था। ऐसे में जब लगभग चार बजे आरएएफ पहुंची, तब जाकर प्रशासन को बल मिला और वे आगे बढ़े। हिंसा भड़कने के बाद फूंकी गई बाइक और ज्ञानचंद की दुकान जलती रही। जिस क्षेत्र में यह कांड हुआ, वहां नीचे दुकान और ऊपर मकान हैं। ऐसे में समय रहते फायर ब्रिगेड के न आने से आग और भड़क सकती थी। लोगों के प्रयास से दुकान की आग पर तो काबू पा लिया गया, लेकिन नफरत की आग की गवाही देती बाइक धधकती रही। जब सबकुछ काबू में हुआ तब साढ़े चार बजे के बाद मौका-ए-वारदात पर फायरकर्मी पहुंचे। ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए क्लिक करें m.jagran.com परया
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Tags:Meerut, Crime, Balba and Danga, Riot, Communal violence, Nikammapan of government


Web Title:Meerut balba is nikammapan of government

(Hindi news from Dainik Jagran, newsstate Desk)

मेरठ में बलवा पर सरकार का निकम्मापन
लखनऊ। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी मेरठ में पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में होने वाली हिंसा से सरकार का निकम्मापन फिर साबित हुआ। दंगाइयों के हौंसले बढ़े हैं और उन पर कार्रवाई होने के बजाय उन्हें संरक्षण मिलता है। सुरक्षा बलों की तैनाती में बेवजह देरी किए जाने से हालात गंभीर हुए है।
रालोद प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ना सपा व भाजपा की सोची समझी चुनावी रणनीति का हिस्सा रहा। मतदान के अंतिम चरण में मेरठ में सांप्रदायिक तनाव होना दुर्भाग्यपूर्ण है। दंगाइयों के साथ सख्ती से निपटना जाए ताकि सौहार्द बिगाड़ने में जुटी ताकतों के हौंसले पस्त हो।
नकाबपोशों ने बरसाई गोलियां
मेरठ में बलवे के दौरान हथियारों का खुलकर प्रदर्शन हुआ। सवाल है कि यकायक आखिर कहां से हथियार व कारतूस आ गए? एक संप्रदाय ने तो दूसरे संप्रदाय पर ए-47 और पेट्रोल बम का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। बहुसंख्यक समुदाय के लोगों का आरोप है कि दूसरे पक्ष से कुछ हमलावर नकाब लगाए हुए थे। चुनाव के चलते अधिकांश लाइसेंसी हथियार जमा करा दिए थे, मगर शनिवार को जैसे ही बवाल हुआ, एकाएक बड़ी संख्या में हथियार निकल आए। चोरों और से गोलियां बरसने लगी। खुलकर तमंचे व पिस्टल, बंदूकों को इस्तेमाल हुआ। पुलिस के सामने ही असलहों का प्रयोग हुआ। एक संप्रदाय के लोगों ने संप्रदाय विशेष के लोगों पर ए-47 से हमला करने की आरोप भी लगाया है। उनका कहना है कि उन्होंने पहले से घरों में हथियार छिपा रखे थे। विवाद होने के बाद नकाब पहनकर गोलियां बरसाने लगे। पूरे मंजर को देखकर लोग इस खूनखराबे के पीछे बड़ी साजिश का अनुमान लगा रहे हैं।
एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड नहीं पहुंची
मेरठ के सांप्रदायिक संघर्ष में पुलिस-प्रशासन के हाथ-पांव किस तरह से फूल गए थे, इसका अंदाजा ग्राउंड जीरो पर देखने को मिला। घायलों को ले जाने के लिए समाजवादी एंबुलेंस 108 और आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को प्रशासन समय नहीं बुला सका। गोलीबारी और पथराव के बीच दर्जनों लोगों के घायल होने की सूचना पुलिस-प्रशासन को मिलती रही, लेकिन पूरे जिले में से एक भी एंबुलेंस मौके पर नहीं पहुंची। सवा दो बजे की घटना में घायलों को लोग अपने-अपने वाहन या पुलिस जीप से अस्पताल ले जाते देखे गए। तब तक भी कोई एंबुलेंस मौका-ए-वारदात के आसपास नहीं पहुंचा था। पुलिस-प्रशासन भी एक सीमित दायरे तक ही सिमटा हुआ था। ऐसे में जब लगभग चार बजे आरएएफ पहुंची, तब जाकर प्रशासन को बल मिला और वे आगे बढ़े। हिंसा भड़कने के बाद फूंकी गई बाइक और ज्ञानचंद की दुकान जलती रही। जिस क्षेत्र में यह कांड हुआ, वहां नीचे दुकान और ऊपर मकान हैं। ऐसे में समय रहते फायर ब्रिगेड के न आने से आग और भड़क सकती थी। लोगों के प्रयास से दुकान की आग पर तो काबू पा लिया गया, लेकिन नफरत की आग की गवाही देती बाइक धधकती रही। जब सबकुछ काबू में हुआ तब साढ़े चार बजे के बाद मौका-ए-वारदात पर फायरकर्मी पहुंचे।
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