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Friday, 16 May 2014
दंगे में ढहा जाटलैंड 'किला' नमो की आंधी में ध्वस्त
दंगे में ढहा जाटलैंड 'किला' नमो की आंधी में ध्वस्त
लखनऊ। छोटे चौधरी की विरासत की सियासत का किला आखिरकार ढह गया। वरन नमो की आंधी में उनका जाटलैंड का 'किला' भी ध्वस्त हो गया। अपने 'गढ़' में जीत की हसरत पाले रहने वाले छोटे चौधरी को दंगे में 'चुप्पी' ने ऐसे 'डसा' कि उन्हें वर्षो तक इस हार की पीड़ा सालती रहेगी। रालोद मुखिया अजित सिंह को जहां नाराज मुस्लिमों ने लोस चुनाव में ठेंगा दिखा दिया,वहीं जाट युवाओं ने भी खूब रुलाया। छोटे चौधरी असली जाटलैंड छपरौली विस से भी हार गए।
पिछले साल मुजफ्फरनगर दंगे की आंच ने वेस्ट यूपी को ऐसे झुलसाया, इसकी तपिश कई महीनों तक रही। इसका असर कई अवसरों और लोस चुनाव-14 में दिखा। मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान रालोद मुखिया की चुप्पी ने जाटों को नाराज किया तो बिगड़े जाट -मुसलमान समीकरण के चलते चौधरी साहब का जनाधार खिसका। शायद तभी से दोनों ने ही छोटे चौधरी को सबक सिखाने का मन बना लिया था। हालांकि रालोद मुखिया जाट युवाओं की गैर मौजूदगी और मुसलमानों की कम उपस्थिति से चिंतित रहते थे और वह अपनी चुनावी सभाओं में इसका जिक्र भी करते थे। करीब दो महीने बाद वह दंगे के बाद बड़ौत आए। भीड़ भी दिखी, लेकिन उसमें उत्साह नहीं था। लोग कह रहे थे,इस बार छोटे चौधरी को सबक सिखा दिया जाएगा।
चुनाव के ऐन पहले रालोद मुखिया ने जाट आरक्षण का भी दांव खेला। इसके बाद वह दोनों(जाट युवा और मुसलमान) जनसभाओं और रैलियों में तो आते रहे। इससे जाट बिरादरी और युवाओं में कुछ नरमी तो दिखी,लेकिन चुनाव के वक्त वह भी मुसलमानों की तरह टस से मस नहीं हुए। अपने बुजुर्गो की इच्छा के विपरीत लोस चुनाव में उन्होंने अपनी खुलकर नाराजगी दिखा दी। कहा,दंगे के समय रालोद मुखिया की इंसानियत कहां चली गयी थी? जब मुखिया को उनके बीच आना चाहिए था, तब वह क्यों नहीं आए? क्यों लंबे समय तक चुप्पी साधे रखी? क्यों कांग्रेस के साथ खड़े रहे? अंतत: सपा की राज्य सरकार ने सबकुछ मैनेज कर लिया,लेकिन छोटे चौधरी सही मौका ही देखते रहे।
दंगे की इस विभीषिका में नमो लहर की आंधी ने भी इस 'आग' में 'घी' का काम किया। मुसलमानों ने जहां सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को अपना नेता माना और गलत नीतियों और निर्णयों के बाद भी उसे वोट दिया,वहीं हिन्दुओं ने भी इस बार नमो का अपना नेता मानते हुए सदियों की बागपत की विरासत को अपने जबरदस्त समर्थन दिया। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर डा.सत्यपाल सिंह को जाटों के अलावा अन्य जातियों ने भरपूर वोट देकर रालोद सुप्रीमो और केंद्रीय नागरिक उड्डयनमंत्री चौधरी अजित सिंह को जोरदार पटखनी दे दी। वह दूसरे पायदान से गिरकर तीसरे नंबर पर पहुंच गए। ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए क्लिक करें m.jagran.com परया
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Tags:Baghpat, Politics, Jatland fort, No existace, West UP, Chhote chaudhary, Ajit singh
Web Title:Jatland fort last their existace in west UP
(Hindi news from Dainik Jagran, newsstate Desk)
दंगे में ढहा जाटलैंड ‘किला’ नमो की आंधी में ध्वस्त
लखनऊ। छोटे चौधरी की विरासत की सियासत का किला आखिरकार ढह गया। वरन नमो की आंधी में उनका जाटलैंड का ‘किला’ भी ध्वस्त हो गया। अपने ‘गढ़’ में जीत की हसरत पाले रहने वाले छोटे चौधरी को दंगे में ‘चुप्पी’ ने ऐसे ‘डसा’ कि उन्हें वर्षो तक इस हार की पीड़ा सालती रहेगी। रालोद मुखिया अजित सिंह को जहां नाराज मुस्लिमों ने लोस चुनाव में ठेंगा दिखा दिया,वहीं जाट युवाओं ने भी खूब रुलाया। छोटे चौधरी असली जाटलैंड छपरौली विस से भी हार गए।
पिछले साल मुजफ्फरनगर दंगे की आंच ने वेस्ट यूपी को ऐसे झुलसाया, इसकी तपिश कई महीनों तक रही। इसका असर कई अवसरों और लोस चुनाव-14 में दिखा। मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान रालोद मुखिया की चुप्पी ने जाटों को नाराज किया तो बिगड़े जाट -मुसलमान समीकरण के चलते चौधरी साहब का जनाधार खिसका। शायद तभी से दोनों ने ही छोटे चौधरी को सबक सिखाने का मन बना लिया था। हालांकि रालोद मुखिया जाट युवाओं की गैर मौजूदगी और मुसलमानों की कम उपस्थिति से चिंतित रहते थे और वह अपनी चुनावी सभाओं में इसका जिक्र भी करते थे। करीब दो महीने बाद वह दंगे के बाद बड़ौत आए। भीड़ भी दिखी, लेकिन उसमें उत्साह नहीं था। लोग कह रहे थे,इस बार छोटे चौधरी को सबक सिखा दिया जाएगा।
चुनाव के ऐन पहले रालोद मुखिया ने जाट आरक्षण का भी दांव खेला। इसके बाद वह दोनों(जाट युवा और मुसलमान) जनसभाओं और रैलियों में तो आते रहे। इससे जाट बिरादरी और युवाओं में कुछ नरमी तो दिखी,लेकिन चुनाव के वक्त वह भी मुसलमानों की तरह टस से मस नहीं हुए। अपने बुजुर्गो की इच्छा के विपरीत लोस चुनाव में उन्होंने अपनी खुलकर नाराजगी दिखा दी। कहा,दंगे के समय रालोद मुखिया की इंसानियत कहां चली गयी थी? जब मुखिया को उनके बीच आना चाहिए था, तब वह क्यों नहीं आए? क्यों लंबे समय तक चुप्पी साधे रखी? क्यों कांग्रेस के साथ खड़े रहे? अंतत: सपा की राज्य सरकार ने सबकुछ मैनेज कर लिया,लेकिन छोटे चौधरी सही मौका ही देखते रहे।
दंगे की इस विभीषिका में नमो लहर की आंधी ने भी इस ‘आग’ में ‘घी’ का काम किया। मुसलमानों ने जहां सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को अपना नेता माना और गलत नीतियों और निर्णयों के बाद भी उसे वोट दिया,वहीं हिन्दुओं ने भी इस बार नमो का अपना नेता मानते हुए सदियों की बागपत की विरासत को अपने जबरदस्त समर्थन दिया। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर डा.सत्यपाल सिंह को जाटों के अलावा अन्य जातियों ने भरपूर वोट देकर रालोद सुप्रीमो और केंद्रीय नागरिक उड्डयनमंत्री चौधरी अजित सिंह को जोरदार पटखनी दे दी। वह दूसरे पायदान से गिरकर तीसरे नंबर पर पहुंच गए।
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