Monday, 12 May 2014

स्कूल के नाम से छपी कापी लेना है मजबूरी


स्कूल के नाम से छपी कापी लेना है मजबूरी
मेरठ : पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए स्कूलों के नाम से छपी कापियां खरीदना मजबूरी बन गई है। हर बड़े स्कूल के नाम से कोई न कोई पब्लिशर कापी छापता है। ये कापियां मिलती भी उन्हीं दुकानों पर हैं, जिन्हें उसका कांट्रेक्ट मिला होता है। बाजार में उपलब्ध अन्य कापियों की तुलना में ये कापियां क्वालिटी में खराब व दाम में ऊंची होती हैं।
दाखिले के सीजन में विद्यार्थियों को किताबों के साथ ही कापियां भी किसी खास दुकान से ही लेने की हिदायत होती है। बड़े पब्लिशर किताब के साथ ही कापियों का भी कांट्रेक्ट लेते हैं। स्कूल की ओर से दी जाने वाली बुक लिस्ट में बाकायदा दुकानों के नाम लिखे होते हैं जहां ये कापियां उपलब्ध होती हैं। न चाह कर भी विद्यार्थियों व अभिभावकों को उन्हीं दुकानों से कापियां खरीदनी पड़ती हैं।
फाड़ दी जाती हैं अन्य कापियां
कुछ स्कूलों में अन्य कोई कापी ले कर जाने पर कापियां फाड़ दी जाती है। हालांकि उन्हीं स्कूलों में अगर स्कूल के नाम वाली कापी का स्टाक समाप्त हो जाए तो बच्चों से अन्य कापी खरीदने को कहा जाता है।
11 से 20 लाख के कांट्रेक्ट
किताब, कापी, ड्रेस आदि के लिए एक वर्ष का कांट्रेक्ट 11 लाख से 20 लाख रुपये के बीच होता है। हर वर्ष स्कूल व पब्लिशर के बीच मोल-भाव के आधार पर यह कांट्रेक्ट होते हैं।
कुछ स्कूलों के नाम से छपी कापियों की कीमत
दीवान पब्लिक स्कूल - 144 पेज - 18 रुपये
मेरठ पब्लिक स्कूल - 120 पेज - 18 रुपये
सेंट मेरीज एकेडमी - 120 पेज - 25 रुपये
ऋषभ एकेडमी - 120 पेज - 35 रुपये
दर्शन एकेडमी - 144 पेज - 25 रुपये
सोफिया ग‌र्ल्स स्कूल - 120 पेज - 25 रुपये
केएल इंटरनेशनल - 120 पेज - 30 रुपये
स्कूलों के हाथ में होनी चाहिए लगाम
पब्लिशर पर स्कूलों की लगाम कमजोर पड़ने से वे कापियों के दाम अपने अनुसार तय करते हैं जिसका प्रभाव अभिभावकों की जेब पर पड़ता है। दीवान पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य एचएम राउत के अनुसार स्कूलों को पारदर्शिता बरतते हुए कापियों के दाम स्वयं तय करने चाहिए। उन्होंने बताया कि स्कूल में एकरूपता बनाए रखने के लिए स्कूल के नाम से कापियां छपवाई जाती हैं, लेकिन उनकी कीमत बाजार के हिसाब से सामान्य ही होनी चाहिए।
वहीं केएल इंटरनेशनल स्कूल के प्रधानाचार्य सुधांशु शेखर का कहना है कि बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव डालना सर्वथा अनुचित है, लेकिन हमारे बीच व्याप्त कुछ उदाहरण के कारण सभी स्कूलों पर सवाल उठाए जाते हैं। अधिकतर स्कूलों के बच्चे स्कूल की कापियों के साथ ही अन्य कापियां भी लाते हैं।ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए क्लिक करें m.jagran.com परया
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(Hindi news from Dainik Jagran, newsstate Desk)

स्कूल के नाम से छपी कापी लेना है मजबूरी
मेरठ : पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए स्कूलों के नाम से छपी कापियां खरीदना मजबूरी बन गई है। हर बड़े स्कूल के नाम से कोई न कोई पब्लिशर कापी छापता है। ये कापियां मिलती भी उन्हीं दुकानों पर हैं, जिन्हें उसका कांट्रेक्ट मिला होता है। बाजार में उपलब्ध अन्य कापियों की तुलना में ये कापियां क्वालिटी में खराब व दाम में ऊंची होती हैं।
दाखिले के सीजन में विद्यार्थियों को किताबों के साथ ही कापियां भी किसी खास दुकान से ही लेने की हिदायत होती है। बड़े पब्लिशर किताब के साथ ही कापियों का भी कांट्रेक्ट लेते हैं। स्कूल की ओर से दी जाने वाली बुक लिस्ट में बाकायदा दुकानों के नाम लिखे होते हैं जहां ये कापियां उपलब्ध होती हैं। न चाह कर भी विद्यार्थियों व अभिभावकों को उन्हीं दुकानों से कापियां खरीदनी पड़ती हैं।
फाड़ दी जाती हैं अन्य कापियां
कुछ स्कूलों में अन्य कोई कापी ले कर जाने पर कापियां फाड़ दी जाती है। हालांकि उन्हीं स्कूलों में अगर स्कूल के नाम वाली कापी का स्टाक समाप्त हो जाए तो बच्चों से अन्य कापी खरीदने को कहा जाता है।
11 से 20 लाख के कांट्रेक्ट
किताब, कापी, ड्रेस आदि के लिए एक वर्ष का कांट्रेक्ट 11 लाख से 20 लाख रुपये के बीच होता है। हर वर्ष स्कूल व पब्लिशर के बीच मोल-भाव के आधार पर यह कांट्रेक्ट होते हैं।
कुछ स्कूलों के नाम से छपी कापियों की कीमत
दीवान पब्लिक स्कूल – 144 पेज – 18 रुपये
मेरठ पब्लिक स्कूल – 120 पेज – 18 रुपये
सेंट मेरीज एकेडमी – 120 पेज – 25 रुपये
ऋषभ एकेडमी – 120 पेज – 35 रुपये
दर्शन एकेडमी – 144 पेज – 25 रुपये
सोफिया ग‌र्ल्स स्कूल – 120 पेज – 25 रुपये
केएल इंटरनेशनल – 120 पेज – 30 रुपये
स्कूलों के हाथ में होनी चाहिए लगाम
पब्लिशर पर स्कूलों की लगाम कमजोर पड़ने से वे कापियों के दाम अपने अनुसार तय करते हैं जिसका प्रभाव अभिभावकों की जेब पर पड़ता है। दीवान पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य एचएम राउत के अनुसार स्कूलों को पारदर्शिता बरतते हुए कापियों के दाम स्वयं तय करने चाहिए। उन्होंने बताया कि स्कूल में एकरूपता बनाए रखने के लिए स्कूल के नाम से कापियां छपवाई जाती हैं, लेकिन उनकी कीमत बाजार के हिसाब से सामान्य ही होनी चाहिए।
वहीं केएल इंटरनेशनल स्कूल के प्रधानाचार्य सुधांशु शेखर का कहना है कि बच्चों पर किसी प्रकार का दबाव डालना सर्वथा अनुचित है, लेकिन हमारे बीच व्याप्त कुछ उदाहरण के कारण सभी स्कूलों पर सवाल उठाए जाते हैं। अधिकतर स्कूलों के बच्चे स्कूल की कापियों के साथ ही अन्य कापियां भी लाते हैं।
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