'तकनीकी में मनुष्यों से ज्यादा माहिर हैं जीव'
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : जीव तकनीक व प्रकृति से सामंजस्य बैठाने में मनुष्यों से कहीं ज्यादा माहिर हैं। रेगिस्तान में जब बाहर का तापमान 45 से 50 डिग्री सेल्यिस पर होता है तब दीमक के घर के अंदर का तापमान 30 डिग्री सेल्यिस होता है। हम अपने घर में तापमान कम करने के लिए कूलर, पंखा और वातानुकूलित यंत्र का प्रयोग करते हैं पर दीमक? दीमक के घर में न एसी होता है और न ही कोई कूलर, पंखा, फिर भी वो अपने घर में आराम से रहता है। है न गजब की तकनीक? दीमक अपने घर को ऐसे डिजाइन करता है जिससे वेंटिलेशन और घर का तापमान कम रहे। यही तकनीक मधुमक्खी भी अपने छत्ते का निर्माण करने में इस्तेमाल करती है। ग्लोबल वार्मिग को देखते हुए वैज्ञानिक आज दीमक और मधुमक्खी की तकनीकी का प्रयोग करते हुए घर के निर्माण पर शोध कर रहे हैं ताकि प्राकृतिक रूप से तापमान को काबू में किया जा सके। राष्ट्रीय तकनीकी दिवस के अवसर पर यह बातें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में आयोजित गोष्ठी और जिला स्तरीय प्रतिभा खोज परीक्षा के विजेताओं के पुरस्कार वितरण समारोह में उभरीं। इससे पूर्व गोष्ठी का उद्घाटन करते हरिश्चंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो.जयंत कुमार भट्टाचार्यजी ने तकनीकी के क्षेत्र में संस्थान द्वारा किए जा रहे शोध के बारे में विस्तार से बात की। स्वागत नासी के डॉ. नीरज कुमार, धन्यवाद एके श्रीवास्तव ने किया।
बायोमिमेटिक्स विषय पर प्रोफेसर सीबीएल श्रीवास्तव ने कहा कि जीव नेचर की चीजों को उसी रूप में लेते हैं वे जिस रूप में हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, जबकि मनुष्य प्रकृति की ऊर्जा को कन्वर्ट करते हैं। इससे प्रकृति को नुकसान होता है।
जरूरत से ज्यादा ठंडा पानी पीते हैं हम
उन्होंने कहा कि गर्मी में हमें जितने ठंडे पानी की आवश्यकता रहती है हम उससे कहीं अधिक ठंडा पानी पीते हैं, इससे ऊर्जा का अपव्यय होता है साथ ही हम बीमार भी होते हैं। इसी तरह हम घरों में एसी को जरूरत से अधिक कूलिंग पर चलाते हैं, जबकि उतने कूलिंग की जरूरत हमें नहीं होती।
तो सूर्यमुखी की तरह घूमेगा पैनल
प्रो.जगदीश खत्री ने उदाहरण दिया कि किस प्रकार सूरजमुखी का फूल सूरज की दिशा के अनुरूप अपनी दिशा बदलता रहता है। विज्ञान भी सोलर लाइट के क्षेत्र में ऐसे ही शोध कर रहा है। ऐसे पैनल बनाने और तकनीकी को और उच्च करने पर जोर चल रहा है ताकि पैनल सूरज की दिशा में ही घूमता रहे।
अब खाद्य प्रसंस्करण आसान
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की फूड टेक्नोलॉजी विभाग की प्रो. विनीता पुराणिक ने और डॉ. वंदना मिश्रा ने खाद्य तकनीकी में हो रहे नए प्रयोगों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अब भोजन को लंबे समय तक सुरक्षित रखना आसान हो गया है। अब ऐसी तकनीकी का विकास कर लिया गया है कि बिना फूड प्रिजरवेटिव का प्रयोग किए खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस तकनीकी में पैकेट से माइक्रोब को हटा देते हैं।
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ग्लोबल वार्मिग पर ज्यादा सवाल
नासी द्वारा आयोजित जिला स्तरीय प्रतिभा खोज परीक्षा के विजेताओं ने वैज्ञानिकों से ग्लोबल वार्मिग पर सर्वाधिक सवाल किए। जवाब में वैज्ञानिकों ने बताया कि मनुष्यों को ग्लोबल वार्मिग के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता है जबकि ऐसा नहीं है। मनुष्यों की क्रियाओं का असर केवल क्षेत्रीय स्तर के पर्यावरण को प्रभावित करता है। इंटरैक्टिव सेशन में प्रो. एसएल श्रीवास्तव, प्रो. कृष्णा मिश्रा, प्रो. यूसी श्रीवास्तव, प्रो. जगदीश खत्री और डॉ. नीरज कुमार शामिल रहे।
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इन्हें मिला पुरस्कार
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (नासी) द्वारा आयोजित जिला स्तरीय प्रतिभा खोज परीक्षा के विजेताओं को रविवार को सम्मानित किया गया। प्रथम विजेता को पांच हजार रुपये, द्वितीय विजेता को तीन हजार व तृतीय विजेता को दो हजार रुपये बतौर नकद पुरस्कार प्रदान किया गया। केमिकल साइंस वर्ग में एमपीवीएम के सयंतन हलदर प्रथम, एमपीवीएम गंगा गुरुकुलम के ऋषभ प्रताप द्वितीय, एमपीवीएम की अदिति सिंह तृतीय स्थान पर रहीं। बायोलॉजिकल साइंस में एमपीवीएम की वर्षा पांडेय प्रथम, गंगागुरुकुलम के ऋषभ प्रताप द्वितीय और टीपीएस मुकर्रम रजा तृतीय स्थान पर रहे। फिजिकल साइंस में एमपीवीएम के सचिन मिश्रा प्रथम, सेंट जोसफ के रोहन छाबरा को द्वितीय और एमपीवीएम की अंशिका भारद्वाज को तृतीय स्थान मिला। मैथमेटिकल साइंस में एमपीवीएम के सयंतन हलदर को प्रथम, यहीं के सचिन मिश्रा को द्वितीय, सेंट जोसफ के रोहन छाबरा और श्री महाप्रभु पब्लिक स्कूल के संतोष सिंह चौहान को संयुक्त रूप से तृतीय स्थान मिला। प्रथम विजेता को पांच हजार रुपये, द्वितीय विजेता को तीन हजार व तृतीय विजेता को दो हजार रुपये बतौर नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र दिए गए। ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए क्लिक करें m.jagran.com परया
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‘तकनीकी में मनुष्यों से ज्यादा माहिर हैं जीव’
जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : जीव तकनीक व प्रकृति से सामंजस्य बैठाने में मनुष्यों से कहीं ज्यादा माहिर हैं। रेगिस्तान में जब बाहर का तापमान 45 से 50 डिग्री सेल्यिस पर होता है तब दीमक के घर के अंदर का तापमान 30 डिग्री सेल्यिस होता है। हम अपने घर में तापमान कम करने के लिए कूलर, पंखा और वातानुकूलित यंत्र का प्रयोग करते हैं पर दीमक? दीमक के घर में न एसी होता है और न ही कोई कूलर, पंखा, फिर भी वो अपने घर में आराम से रहता है। है न गजब की तकनीक? दीमक अपने घर को ऐसे डिजाइन करता है जिससे वेंटिलेशन और घर का तापमान कम रहे। यही तकनीक मधुमक्खी भी अपने छत्ते का निर्माण करने में इस्तेमाल करती है। ग्लोबल वार्मिग को देखते हुए वैज्ञानिक आज दीमक और मधुमक्खी की तकनीकी का प्रयोग करते हुए घर के निर्माण पर शोध कर रहे हैं ताकि प्राकृतिक रूप से तापमान को काबू में किया जा सके। राष्ट्रीय तकनीकी दिवस के अवसर पर यह बातें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में आयोजित गोष्ठी और जिला स्तरीय प्रतिभा खोज परीक्षा के विजेताओं के पुरस्कार वितरण समारोह में उभरीं। इससे पूर्व गोष्ठी का उद्घाटन करते हरिश्चंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो.जयंत कुमार भट्टाचार्यजी ने तकनीकी के क्षेत्र में संस्थान द्वारा किए जा रहे शोध के बारे में विस्तार से बात की। स्वागत नासी के डॉ. नीरज कुमार, धन्यवाद एके श्रीवास्तव ने किया।
बायोमिमेटिक्स विषय पर प्रोफेसर सीबीएल श्रीवास्तव ने कहा कि जीव नेचर की चीजों को उसी रूप में लेते हैं वे जिस रूप में हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, जबकि मनुष्य प्रकृति की ऊर्जा को कन्वर्ट करते हैं। इससे प्रकृति को नुकसान होता है।
जरूरत से ज्यादा ठंडा पानी पीते हैं हम
उन्होंने कहा कि गर्मी में हमें जितने ठंडे पानी की आवश्यकता रहती है हम उससे कहीं अधिक ठंडा पानी पीते हैं, इससे ऊर्जा का अपव्यय होता है साथ ही हम बीमार भी होते हैं। इसी तरह हम घरों में एसी को जरूरत से अधिक कूलिंग पर चलाते हैं, जबकि उतने कूलिंग की जरूरत हमें नहीं होती।
तो सूर्यमुखी की तरह घूमेगा पैनल
प्रो.जगदीश खत्री ने उदाहरण दिया कि किस प्रकार सूरजमुखी का फूल सूरज की दिशा के अनुरूप अपनी दिशा बदलता रहता है। विज्ञान भी सोलर लाइट के क्षेत्र में ऐसे ही शोध कर रहा है। ऐसे पैनल बनाने और तकनीकी को और उच्च करने पर जोर चल रहा है ताकि पैनल सूरज की दिशा में ही घूमता रहे।
अब खाद्य प्रसंस्करण आसान
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की फूड टेक्नोलॉजी विभाग की प्रो. विनीता पुराणिक ने और डॉ. वंदना मिश्रा ने खाद्य तकनीकी में हो रहे नए प्रयोगों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अब भोजन को लंबे समय तक सुरक्षित रखना आसान हो गया है। अब ऐसी तकनीकी का विकास कर लिया गया है कि बिना फूड प्रिजरवेटिव का प्रयोग किए खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस तकनीकी में पैकेट से माइक्रोब को हटा देते हैं।
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ग्लोबल वार्मिग पर ज्यादा सवाल
नासी द्वारा आयोजित जिला स्तरीय प्रतिभा खोज परीक्षा के विजेताओं ने वैज्ञानिकों से ग्लोबल वार्मिग पर सर्वाधिक सवाल किए। जवाब में वैज्ञानिकों ने बताया कि मनुष्यों को ग्लोबल वार्मिग के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता है जबकि ऐसा नहीं है। मनुष्यों की क्रियाओं का असर केवल क्षेत्रीय स्तर के पर्यावरण को प्रभावित करता है। इंटरैक्टिव सेशन में प्रो. एसएल श्रीवास्तव, प्रो. कृष्णा मिश्रा, प्रो. यूसी श्रीवास्तव, प्रो. जगदीश खत्री और डॉ. नीरज कुमार शामिल रहे।
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इन्हें मिला पुरस्कार
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (नासी) द्वारा आयोजित जिला स्तरीय प्रतिभा खोज परीक्षा के विजेताओं को रविवार को सम्मानित किया गया। प्रथम विजेता को पांच हजार रुपये, द्वितीय विजेता को तीन हजार व तृतीय विजेता को दो हजार रुपये बतौर नकद पुरस्कार प्रदान किया गया। केमिकल साइंस वर्ग में एमपीवीएम के सयंतन हलदर प्रथम, एमपीवीएम गंगा गुरुकुलम के ऋषभ प्रताप द्वितीय, एमपीवीएम की अदिति सिंह तृतीय स्थान पर रहीं। बायोलॉजिकल साइंस में एमपीवीएम की वर्षा पांडेय प्रथम, गंगागुरुकुलम के ऋषभ प्रताप द्वितीय और टीपीएस मुकर्रम रजा तृतीय स्थान पर रहे। फिजिकल साइंस में एमपीवीएम के सचिन मिश्रा प्रथम, सेंट जोसफ के रोहन छाबरा को द्वितीय और एमपीवीएम की अंशिका भारद्वाज को तृतीय स्थान मिला। मैथमेटिकल साइंस में एमपीवीएम के सयंतन हलदर को प्रथम, यहीं के सचिन मिश्रा को द्वितीय, सेंट जोसफ के रोहन छाबरा और श्री महाप्रभु पब्लिक स्कूल के संतोष सिंह चौहान को संयुक्त रूप से तृतीय स्थान मिला। प्रथम विजेता को पांच हजार रुपये, द्वितीय विजेता को तीन हजार व तृतीय विजेता को दो हजार रुपये बतौर नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र दिए गए।
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